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परिवार की कहानी | Family Story in Hindi

 फोन की घंटी बजी और शिवानी ने फोन उठाया ,उधर से कोई बोला, भाभी और रोने की आवाज आने लगी। शिवानी ने प्यार से पूछा क्यों रो रहे हो , छोटे बच्चे की तरह ? अमित रोते हुए बोला ,भाभी और फिर सुबकने की आवाज़ आने लगी। शिवानी बोली पहले चुप हो जाओ । अमित थोड़ा शान्त होकर बोला- भाभी, प्लीज भैया को छुड़ा दो ।



मुझसे ऐसी बात मत करो ,मैं फोन रखती हूँ शिवानी यह कहते हुए फोन रखने लगी।तभी उधर से आवाज़ आई भाभी प्लीज फोन मत रखना। भाभी -भैया की गलती नहीं है ।
क्या कह रहे हो तुम !तुम्हें पता भी है ।मुझे तुम से इस विषय में कोई बात नहीं करनी । कुछ और बात है तो बताओ। भाभी मैं जानता हूँ -अमित रूंधे हुए स्वर में बोला । शिवानी न चाहते हुए भी थोड़े गुस्से से बोली- क्या जानते हो ?
यह ही कि भैया ने आप को मारा और क्यों मारा ये भी जानता हूँ। अमित थोड़ा धीरे से बोला।
शिवानी को अब गुस्सा आने लगा और वो थोड़ी तेज़ आवाज़ में बोली- ये सब कहने को तुम्हें किसने कहा?
भाभी किसी ने नहीं,मम्मी-पापा तो किसी वकील से मिलने गए हैं । उन्होंने तो आप से बात करने को मना किया है। अमित ने जवाब दिया ।
तो फिर क्यों बात कर रहे हो ? तुम इन सब बातों में मत पड़ो। शिवानी गुस्से से बोली ।
कैसे न पड़ूँ ,वो मेरे बड़े भाई ही नहीं, सब कुछ हैं ।मैं उनके बिना कैसे जिऊंगा । गलती मैंने की और सजा भैया भुगत रहे हैं । अमीत कहकर चुप हो गया।
तुमने कोई गलती नहीं की। तुम्हारे भैया ने मुझे मारा है। एक बार भी नहीं दो बार पहले थप्पड़ मारा और फिर अगले दिन गला दबाने की कोशिश की ।  शिवानी झुंझलाहट में सब बोल गई ।
अमीत भी चीखकर बोला- माँ ने कहा था कि उसे सच जान । उसने अमित की स्कूल की यूनिफॉर्म की टाई और बेल्ट क्यों छुपाई थी ? वो भैया को बार-बार फोन करके परेशान किए जा रही थीं । भैया ने बताया था कि आप ने ऐसा कुछ नहीं किया । उन्होंने कहा आप झूठ बोल रही हैं । आप चाहती ही नहीं कि मैं पढ़ूँ ।बस भैया को गुस्सा आ गया । मैंने सोचा ,भैया जब शांत हो जाएंगे तो मैं सच बता दूंगा
तुम क्या कह रहे हो ? तुम्हें पता भी है! शिवानी हैरान होकर बोली।

अमित धीरे से बोला -हाँ ,भाभी मैं जानता हूँ ,मैं क्या बोल रहा हूँ । चौबीस जनवरी सुबह पांच बजे आप दोनों बैंगलुरू के लिए निकल गए थे । मुझे लगा था उस दिन मैं स्कूल की छुट्टी कर लूँगा पर मम्मी-पापा बोले ,नहीं कोई छुट्टी नहीं,  स्कूल जाओ । स्कूल में मेरा टेस्ट था और मैंने याद नहीं किया था । मम्मी-पापा को पता था कि बुधवार को स्कूल की यूनिफार्म की चेकिंग होती है इसलिए मैंने टाई-बेल्ट जल्दी से बैड में नीचे डाल दी और उनके साथ ढूँढने लग गया । बस ढूँढते-ढूँढते समय कट गया। मम्मी को लगा आप छुपा कर गई हैं । उन्होंने तभी भैया को फोन लगा कर गुस्से में आप के लिए बहुत कुछ कहा और साथ में ये भी कह दिया आप चाहती ही नहीं, मैं पढ़ूँ । मुझे यह नहीं पता था यह इतनी बड़ी बात हो जाएगी । साॅरी भाभी ।
शिवानी ने दर्द भरी आवाज़ में कहा- तुमने यह बात अपने भैया से क्यों नहीं बताई ?
मैंने भैया को फोन किया था पर भैया ने कहा मैं बाद में बात करूँगा । मैं डर भी गया था । भाभी,प्लीज मेरे भैया को जेल से निकाल दो । उन की जिंदगी खराब हो जायेगी । उन्होंने बहुत मेहनत की है तब जाकर इतनी अच्छी नौकरी मिली है । भाभी प्लीज मेरी खातिर । ये कहकर अमित ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा।

शिवानी बोली -चुप हो जाओ । मैं तुम्हारे भैया को जेल से निकाल दूँगी पर तुम प्रॉमिस करो , तुम हमारी इन बातों के बारे में कभी किसी को नहीं बताओगे,
अपने भैया तक को नहीं । आज के बाद मुझ से बात भी
नहीं करोगे । शिवानी ने फोन रख दिया ।
फोन रखकर वो फूट-फूटकर रोने लगी । थोड़ी देर बाद चुप हो गई और कंप्लेंट वापस कैसे लेनी है सोचने लगी क्योंकि पापा ने ही वहाँ से थाने फोन किया था और पुलिस रात को आकर पकड़ कर ले गई थी । तभी दरवाजे पर बैल बजती है वह दरवाजे के पीपहोल से देखकर दरवाजा खोल देती है और दरवाजा खोलते ही अपने पापा के गले लगकर खूब रोती है । उस के पापा की भी आँखे नम हो जाती हैं ।
फिर उसके पापा उसे चुप करवाते हैं और उसे कहते हैं
तैयार हो जाओ थाने जाना है ‘एफ आई आर ‘लिखवानी है । रात को सिर्फ तुम्हारे प्रोटेक्शन के लिए पुलिस उसे ले गई थी ।
शिवानी पहले अपने पापा को पानी देती है और फिर चाय बनाकर लाती है । पापा कहते हैं -चाय क्यों बनाई?
शिवानी कहती है पापा पहले मुझे आपसे कुछ बातें करनी है और फिर वह बैठकर सब बातें बताती है। बातें सुनकर पापा एक गहरी लंबी सांस लेते हैं और कहते हैं तो अब तू क्या करना चाहती है ? दुःखी मन से पूछते हैं। पापा मुझे कुछ नहीं करना, बस आप उस इंसान को जेल से निकलवा दो और अब मैं अपनी जिंदगी खुद ही जीऊँगी । अभी आप के साथ आपके घर जाऊँगी और नौकरी करूँगी, बस अभी ओर कुछ नहीं ।

उसके पापा उसके सर पर हाथ रखकर एक लम्बी सांस
लेते हैं और कहते हैं बेटा वो तेरा घर है और सदा तेरा ही घर रहेगा । भावुक हो उठते हैं । फिर अपने को संभालते हुए कहते हैं तू जो चाहे कर ,बस खुश रहने की कोशिश कर और खुद के आँसू सम्भाल नहीं पा रहे
थे। ऐसा ही होता है बाप का प्यार । आए तो थे रोष से भरे हुए ,ये सोचकर कि उसे सजा दिलवाकर ही चैन की सांस लेंगे । पर बेटी के आँसुओं और बातों ने शांत कर दिया । कभी-कभी घर की छोटी-छोटी बातें घर तबाह कर देती हैं, घर बसने से पहले ही उजाड़ देती हैं,सपनों के ताजमहल मिनट में ढेर कर देती हैं । मेरी बेटी का क्या कसूर था ? ये सब सोचते हुए उठते हैं और शिवानी से सामान पैक करने को कहते हैं।
फिर पापा-बेटी थाने जाने के लिए निकल जाते हैं।



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