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एक राज्य के नगर सेठ | Ek Rajya ke Nagar Seth Hindi Kahani

एक राज्य के नगर सेठ को अपने व्यापार पर आर्थिक  संकट आया तो व राजा के पास मदद के लिये गया। 


उसने राजा से कहा कि राजा उसे आवश्यक धन उधार दे, वह लौटने पर रकम वापस कर देगा। राजा ने उसे अपेक्षित राशि राजकोश से दिलवा दी। 
सेठ की एक प्रार्थना और भी थी। वह चाहता था कि उसके लौटने तक राजा उसके चार दृष्टिहीन बेटों को अपने आश्रय में रखे रहे।

" मेरे बेटे दृष्टिहीन अवश्य हैं, महाराज ", सेठ बोला। उसकी आँखें चमक रही थीं, " लेकिन हुनरमंद हैं , एक रत्न विशेषज्ञ है तो एक घोड़ों का नंबर एक पारखी, तीसरा औरतों का विशेषज्ञ है और चौथा आदमियों का !
कभी आजमाकर देखियेगा मेरे बेटों के हुनर को ! "
सेठ परदेस चला गया। दिन बीतने लगे। 

एक दिन एक जौहरी महल पर आया। राजा को एक बड़ा सा हीरा पसंद आया। एकाएक उसे सेठ के बेटों का खयाल आ गया। " वो जो रतनों का जानकार है, उसको लाओ रे। " राजा बोला।

अंधा युवक आकर , बताये गये स्थान पर, बैठ गया। हीरे को अपनी हथेलियों में उसने मला। 
" ये एक नहीं, दो हीरे हैं, जिन्हें जोड़ा गया है।" युवक बोला , " जोड़ का पत्थर पहनना अशुभ मानते हैं ।"  जौहरी भड़क कर खड़ा हो गया, 
" एक नेत्रहीन व्यक्ति के कहने पर आप लोगों को फैसला करना है तो मुझे क्षमा करें ।"

दृष्टिहीन युवक ने जौहरी को बैठने का संकेत किया,"  अभी सच झूठ सामने आ जाता है , श्रीमान । बैठिये तो। कोई एक मोमबत्ती लाओ।" 

जब युवक ने जलती मोमबत्ती की लौ के पास हीरा किया तो एक महीन रेखा रत्न पर दिखने लगी। कुछ पलों बाद हीरा युवक की हथेली पर  एक से दो हो कर पड़ा था।
लाखों माफियाँ मांगता जौहरी जान बचा कर भागा ।

राजा को हँसते हँसते आँखों में आँसू आ गये। 
" कमाल का काम किया " वह बोला । उसने दो बार तालियाँ बजाईं, " कोई है ! हम बहुत खुश हैं । आज से इस जवान के दो परांठे और एक कटोरी सालन बढा दिये जायें ।"

कुछ दिनों बाद  एक घोड़ों का सौदागर आया।
सेनापति ने राजा के लिये एक तगड़ा अरबी घोड़ा 
पसंद किया ।  
स्याह काले रंग के इस घोड़े की शान देखने वाली थी।
मैदान में उसे घुमाकर देखा गया। घोड़ा तूफानी गति से भागता था। हर देखने वाला लहालोट हो गया।
" लेंगे । यही घोड़ा लेंगे " राजा अपनी रानें पीटता हुआ चिल्लाया, " लेकिन सेठ के बेटे को भी एक बार दिखा दो।"  

सेठ का दूसरे नंबर का पुत्र आया और घोड़े के पास पहुंचा । घोड़े के माथे और पीठ पर हाथ फेरने के बाद जब वह उसे सूंघने लगा तो कई दरबारी हंसते हंसते लोट गये।

इस सारे हाहा ठीठी का युवक पर कोई असर नहीं पड़ा। वह अपनी शानदार चाल चलता , राजा के सामने, सर उठाये, आ खड़ा हुआ, 
" यह घोड़ा किसी योध्दा की सवारी के लायक नहीं है।  चलते युद्ध के दौरान जब इस पर सवार योद्धा को इसके पूरी गति से भागने की आवश्यकता होगी, तब कहीं इसने रास्ते में कोई  पोखरी या कीचड़ देखा तो सवार को लिये दिये लोटने लगेगा। "

सेनापति ने मुस्कुराते हुये सौदागर की तरफ देखा तो पाया कि  वह राजा के सामने हाथ  जोड़े खड़ा है। 
" माफ कर दें  सरकार । " अवाक राजा और दरबारी कुछ समझे , न समझें, तब तक सौदागर अपने हाली हवाली और घोड़े लेकर गायब हो चुका था ।

प्रभावित राजा ने पूछा, " तुमने कैसे जाना कि घोड़ा ऐसा है ? "  
युवक मुस्कराया, " मैंने उसका पसीना सूंघा था। ये बचपन में भैंस के दूध पर पला है। शायद माँ मर गई होगी।" 
राजा झूम गया, " ऐ शाबाश है! कोई  है ? आज से इसके दो परांठे और एक कटोरी दाल बढवा दो।"

कोई एक हफ्ते बाद महारानी के साथ राग रंग में लगे राजा को न जाने क्या सूझी कि सेठ के तीसरे बेटे को बुलवा भेजा। तखलिया करवाने के बाद राजा सेठ के बेटे से मुखातिब हुआ,
"आज तुम महारानी के बारे में कुछ बताओगे।"  
नौजवान ने दाहिना  हाथ बढाया और महारानी के कंधे पर रख दिया। महारानी का चेहरा सुर्ख होने लगा मगर नौजवान ने लगभग तुरत ही हाथ हटा लिया । 
उसका चेहरा गंभीर हो चुका था। एक लंबी सांस खींचकर उसने कहा, " ये किसी तवायफ की बेटी हैं, महाराज!" 
राजा ने हौले से दो बार तालियाँ बजाईं, " बहुत खूब! दरअसल इनके पिता अपनी रानी से बहुत ज्यादा प्रेम करते थे । रानी साहिबा को एक बेटी हुई और एक दिन बाद मर गयी। उनको सदमे से बचाने के लिये महाराज ने अपनी रक्षिता तवायफ की बेटी रानी की गोद में डाल दी।
ये बात उन्होंने हमारे पिताजी महाराज, जो उनके घनिष्ठ मित्र थे, छुपाई नहीं थी।लेकिन  तुमने कैसे जाना ? "

नौजवान ने जवाब दिया," गैर मर्द के स्पर्श से होने वाली सिहरन बता देती है औरत की सीरत! " 
राजा चकित था, बोला, 
"मगर कमाल हो तुम ।  चलो, इनाम में आज से तुम्हारे दो परांठे और एक कटोरी दाल बढाई जाती है। "

सेठ के आने का समाचार आ चुका था। एक दिन पहले राजा ने सेठ के चौथे बेटे को बुलवाया । कक्ष में सिर्फ वही दो लोग थे। 
राजा ने कहा," अब कल तुम लोग चले जाओगे। तुम्हारे तीन भाइयों के हुनर की आजमाइश तो हो गई,  तुम बचे हो। तो तुम हमारे बारे में कुछ बताओ! "

सेठ का सबसे छोटा बेटा अभी किशोर ही था। वो ठठाकर हँसा, 
" महाराज! " वो बोला " मेरे भाइयों ने हुनर में दाग लगाया कि हाथ का इस्तेमाल करना पड़ा। मैं बिना आपको हाथ लगाये आपके बारे में बताऊंगा, लेकिन जान की अमान मिले और साबुत , सलामत जिस्म की !" 

राजा हैरान हो गया, 
"ठीक है। तुम कुछ भी कहो तुम्हारे प्राणों और शरीर को कोई क्षति नहीं पहुँचेगी।" वह बोला " अब बोलो ! "

किशोर ने मानों बम सा फोड़ दिया, 
"आप किसी ढाबे वाले की औलाद हैं!" 

राजा मां के पास पहुंचा, सारी बात बता कर आत्मघात की धमकी दी तो राजमाता ने बताया कि वे एक साधारण परिवार की लड़की थीं । एक ढाबे वाले से प्रेम था और सारी सीमायें ढह चुकी थीं । वे शादी करने ही वाले थे कि तत्कालीन महाराज की गिद्धदृष्टि किसी उत्सव में उनपर पड़ी और किसकी मजाल थी कि इनकार करता।  

राजा वापस कक्ष में पहुंचा । वह बोला।
" ये राज राज ही रहे। लेकिन तुमने जाना कैसे ? " 
 
किशोर मुस्कराया तो मुस्कराहट की उजास उसके तरुण चेहरे पर फैल गयी। 
"मेरे भाइयों ने जो काम करके दिखाये ", 
वो बोला, 
"अगर कोई सच्चा राजा होता तो हीरे मोतियों से लाद देता,  लेकिन आप !! दो परांठे और एक कटोरी दाल बढा दो !! ये ढाबे वाले की कृपा का चरम है , किसी राजा की कृपा का नहीं! "
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