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किसका घर "माता-पिता का या बेटे का" Mata-Pita Ka Ghar ?

*आज की बोधकथा*

*किसका घर माता-पिता का या बेटे का ❤️❤️*




"पापा नया घर बिल्कुल तैयार हो चुका है। सोच रहा हूं कि वहां दीपावली पर शिफ्ट कर लूं।" सिद्धार्थ ने अपने पापा गोविंद प्रसाद जी से कहा।
सिद्धार्थ गोविंद जी और सुधा का इकलौता बेटा है। सुधा वहीं पर बैठी मूकदर्शक बनी चुपचाप सुन रही है। पिछले कुछ दिनों से उसने किसी भी बात पर रियेक्ट करना छोड़ दिया था। न‌ए घर की उमंग में सिद्धार्थ और उसकी पत्नी रिया दोनों बेहद खुश थे। सिद्धार्थ बहुत बड़ा अफसर है। रिया भी अमीर खानदान से ताल्लुक रखती है। गोविन्द जी ने अपने घर को बहुत चाव से बनवाया था।  कोठी बाग बगीचा सब कुछ था। परन्तु जब सिद्धार्थ ने कहा कि उसने भी एक घर का सपना देखा है अपने घर का।
ये सुनकर गोविंद जी आश्चर्यचकित रह गए थे। "अपना घर तो ये किसका घर है??"
"नहीं पापा ये घर आपका‌ है। मैं अपने घर को अपनी मेहनत से बनाना चाहता हूं।" फिर उसने उनसे कुछ पूछने की जरूरत नहीं समझी थी। सब कुछ रिया और उसकी मर्जी से होने लगा था। बीच-बीच में सिद्धार्थ उनसे सलाह ले लिया करता था। जबरन उन्हें दो तीन बार साइट पर भी ले गया था। मां को तो न कुछ पूछा न दिखाने की जरूरत महसूस की थी।



सुधा के अंदर तो जैसे सब कुछ टूट गया था।जिस बेटे को उसने जान से भी ज्यादा प्यार किया था उसने एक तरह से उसका तिरस्कार कर दिया था। तिरस्कार बोल कर ही नहीं चुप रह कर भी किया जा सकता है। सुधा महसूस कर सकती थी। रिया ने बहू के रूप में कभी उन्हें कोई तकलीफ नहीं दी थी। अमीर घर की बेटी होने के बावजूद उसका व्यवहार बेहद  संस्कारी और संयमित था। पांच साल का गोलू और रिया घर की रौनक थे। सुधा ने कभी भी रिया के साथ बुरा बर्ताव नहीं किया था। गोलू में तो सुधा की जान बसती थी। पर सुधा बेटे के व्यवहार से बहुत आहत हो गई थी कभी कभी गोविंद जी से अकेले में बात करते हुए पूछती कि ये मुझे मेरे किन पापों का फल मिला??? एक ही बेटा वह भी घर छोड़ कर चला जाएगा। गोलू और रिया.....
ये कह कर उसके आंसू निकल आते थे। मैंने तो अपने सास ससुर की दिल से सेवा की कभी उनका दिल नहीं दुखाया अम्मा जी ने तो अंतिम समय मेरे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया था कि ईश्वर हमेशा तुझे खुशी देंगे। फिर पता नहीं हमारे परिवार को किसकी बद्दुआ लग गई।


धीरे धीरे दुःख मना कर उसने अपने दिल को समझा लिया था।
गोविन्द जी उसे समझाते कि तुम्हारा जब मन करे वहां चली जाना।बेटे की तरक्की पर दुःख नहीं मनाते खुश होते हैं। रिया और सिद्धार्थ एक एक चीजें चुन चुन कर ला रहे थे। गोविन्द जी को बेटे से दूर होने का दुःख था पर उन्होंने जाहिर नहीं किया। वो उसे महसूस कराते कि वो उसकी खुशी में खुश हैं।


आज धनतेरस है गृहप्रवेश की सारी तैयारियां हो चुकी थी। सिद्धार्थ और रिया न‌ए घर की खुशी में बेहद उत्साहित थे। सिद्धार्थ सुबह सुबह न‌ए कपड़े ले कर मां पापा के रूम में आया। पापा के लिए खूबसूरत सिल्क का कुर्ता बंद गले की जैकेट के साथ और मां के लिए बेहद सुंदर सिल्क की साड़ी मम्मी के पसंदीदा हरे लाल रंग की।
मां, पापा जल्दी से तैयार हो जाइए ग्यारह बजे का मूर्हत है। सुधा चुप थी। सोच रही थी कि बस तैयार हो जाओ। और चलो। अंदर जैसे कुछ खत्म सा हो गया न कोई उत्साह न कोई खुशी उसे जा कर सिर्फ खड़े होना है।
गोलू आ कर उसके गले से झूल गया दादी मां आप मेरे साथ चलोगी न आंखों में आंसू भर कर उसने गोलू को छाती से चिपका लिया। सुधा गाड़ी में पूरे रास्ते भर चुप थी। जिस दिन भूमि पूजन हुआ था उसके बाद आज वो घर देखने जा रही है।‌ गाड़ी से उतरते ही सामने बेटे की कोठी को सिर उठा कर देखा तो दंग रह ग‌ई।

"बहुत खूबसूरत आधुनिक तरीके से डिजाइन किया गया था।"

"आओ मां !" बेटे ने मां का हाथ पकड़ लिया।

महीनों बाद उसने कुछ कहा । सुधा सोच रही थी कि आज न‌ए घर की उमंग में अपनी मां से अबोला खत्म कर रहा है।
घर के मेन गेट पर नेमप्लेट देख कर सुधा स्तब्ध हो गई।
"सुधा गोविंद निवास"
उसका दिल बहुत तेज से धड़क उठा। बेटा मां के चेहरे के भाव पड़ने की कोशिश कर रहा था। अंदर रिया खड़ी मुस्कुराई।

आइए मां ! आपके न‌ए घर में आपका स्वागत है। ये लीजिए आपकी अमानत रिया ने घर की चाभियां सुधा के हाथ में रख दी।


बेटे ने मां का हाथ चूम लिया। " मां अपने न‌ए घर में भगवान के लिए भोग अपने हाथ से बनाओ पर प्रसाद मेरी पसंद का होगा।"
सुधा समझ ही नहीं पा रही थी। क्या बनाऊं??? सुधा की आंखों से आंसू टपक पड़े।
" हलवा बनाऊंगी" मेरे कान्हा जी की और तेरी पसंद का।
पहले अपना और पापा का रूम देख लो मां सुधा को लगभग खींचते हुए रुम में ले गया सुधा देख रही थी उस रूम में सब कुछ उसकी पसंद का है।
पापा के लिए रॉकिंग चेयर, उसके लिए सामने से खुलने वाली खिड़की सुबह-सुबह सूर्य की पहली किरण के दर्शन सूर्य भगवान को नमन करना ये उसका सपना था। जिसे वह कभी सिद्धार्थ से कहा करती थी। बाहर तुलसी जी का चौरा जैसा वो हमेशा चाहती थी।

अरे! ये तो उसका लगाया हुआ मनीप्लांट है। इसके लिए वह कितना परेशान हुई थी। माली ने उसे उखाड़ कर गुलदाउदी लगा दिया था तो उसने माली को कितना डांटा था।
तो मेरे बच्चे को सब कुछ याद था। उसका मन पुलकित हो उठा। कमरे की एक एक चीज को छू कर देख थी।
"मां आपने क्या सोचा था??? आपका राजा बेटा आपके बिना खुश रहेगा ???" रिया मुस्कुराती हुई कह उठी मां आपका बेटा तो मेरे गोलू से भी छोटा है।
"मां" सिद्धार्थ ने सुधा को बाहों में समेट लिया आपके संस्कार इतने कमजोर नहीं हैं। आपने क्या सोचा ???? कि आपका बेटा आपको और पापा को यूं ही अकेला छोड़ देगा। नहीं मां, वो घर मेरा है जो पापा ने मुझे दिया। और ये घर आप दोनों का है जो मैंने आपको दिया है।


गोविन्द जी आश्चर्यचकित थे।"पर बेटा परिवार तो दो हिस्सों में बंट जाएगा न।"
" कैसे बंटेगा पापा ??"

"ये घर मेरे ऑफिस के पास है। इसलिए "वर्किंग डे" पर यहां रहेंगे और "वीकेंड" पर वहां।"
मैं दादी मां के पास ही सोऊंगा  ऐसा कह कर गोलू दादी के आंचल में छिप गया। सुधा आंखों में खुशी के आंसू लिए "अम्मा जी का हाथ" अपने सिर पर महसूस कर रही थी।



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